ईर्ष्या में न जलें, अपना मन बदलें
ईर्ष्या में न जलें, अपना मन बदलें
हमारा जीवन आर्थिक, भौतिक और सामाजिक उपलब्धियों और अनुपलब्धियों का मिश्रण है । हम कुछ उपलब्धियां हासिल कर पाते हैं और कुछ हमारी क्षमता से बाहर होती हैं । फिर भी जीवन यापन हेतु वांछित साधन जुटाने में हर व्यक्ति लगभग सफल हो ही जाता है । औसत रूप से हर व्यक्ति का जीवन ठीकठाक चलता रहता है । इसके साथ साथ उपलब्धियों की सफलता और विफलता भी जीवन पर्यन्त चलती रहती है ।
यह सत्य है कि हमारी दृष्टि अक्सर अप्राप्तियों और अभाव पर ही रहती है । जिस वस्तु का हमारे पास अभाव है, उसकी उपलब्धता किसी और के पास होने की सूचना मिलते ही उस वस्तु के प्रति हमारी आसक्ति और अधिक बढ़ जाती है । सूक्ष्मता से स्वयं को परखा जाये तो उस वस्तु की कमी हमें उतनी बेचैन नहीं करती जितनी हमें यह सूचना बेचैन करती है कि वह वस्तु किसी दूसरे के पास उपलब्ध क्यों है ? इसी क्रम में अनेक प्रश्न उत्पन्न होने लगते हैं कि उसने हमसे पहले वह वस्तु कैसे हासिल कर ली ? उसने ऐसा क्या किया होगा ? वह वस्तु मेरे पास क्यों नहीं है ? बेचैनी भरे इन्हीं प्रश्नों की कोख से ईर्ष्या रूपी दूषित भावना का जन्म होता है ।
ईर्ष्या समाप्त करने का सीधा सा समाधान यही है कि हमें जो कुछ भी उपलब्ध है, उसके प्रति परमात्मा को धन्यवाद करते हुए अपने जीवन में सभी प्रकार की प्रचूरता और सम्पन्नता का अनुभव किया जाये ।
जीवन में आर्थिक, भौतिक और सामाजिक रूप से सम्पन्न बनने का प्रयास सफल होने पर हमें खुशी प्रदान करता है । अक्सर हम इसी अपेक्षा से अपने परिवार के सदस्यों, मित्रों, सम्बन्धियों और पड़ौसियों के समक्ष अपनी सफलता अभिव्यक्त करते हैं, ताकि वे लोग भी हमारी उपलब्धियों के बारे में सुनकर हमारी खुशी में शामिल हो जाये । किन्तु मन में सुलगती हुई ईर्ष्या की अग्नि औरों की खुशी सुनकर और अधिक धधकने लगती है । परिणाम स्वरूप खुशी का समाचार सुनकर लोग बड़े ही सुस्त भाव से अपनी प्रतिक्रिया देते हैं । ईर्ष्या के वशीभूत होने के कारण औरों की खुशी पचाना उनके लिये इतना कठिन होता है कि वे मन ही मन ईर्ष्याजनित विचारों की वमनक्रिया करने लगते हैं ।
जीवन में खुशी का महत्व तभी है जब हमारे आसपास के लोगों की खुशी देखकर हमें अपनी खुशी में कमी महसूस न हो । अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि हमसे अधिक क्षमताएं और प्रतिभा होने के कारण कोई व्यक्ति हमसे अधिक सफल हुआ है । इसी कारण हमें दूसरों की सफलता पर ईर्ष्या होने लगती है ।
हमारे मित्र सम्बन्धियों में कुछ लोगों का अविश्वसनीय रूप से हमारी तुलना में अधिक प्रतिभाशाली होने के कारण उनके स्तर तक पहुंचना हमारे लिये कठिन होता है । निश्चित रूप से उन्होंने अपनी क्षमता और कुशलता को निखारने के लिये हमारी तुलना में अधिक मेहनत की होगी । इसलिये हमसे अधिक सफलता उनकी उसी मेहनत का ईनाम है ।
खुशी एक अभिव्यक्ति है जो निजी सफलता पर अधिक निर्भर होती है । किसी और की सफलता को अपनी सफलता समझकर खुशी की अभिव्यक्ति करने वाले लोग अत्यन्त ही दुर्लभ जड़ीबूटी के समान दिखाई पड़ते हैं । अपने जीवन में अभाव महसूस कराने वाली मानसिकता पालने के साथ-साथ औरों से अधिक सफल होने की उत्कण्ठा जगाने के कारण ईर्ष्या का प्रादुर्भाव होता है । अपने किसी मित्र को हमारी तुलना में अच्छी नौकरी, अच्छा जीवन साथी और नया बड़ा घर मिलने पर ईर्ष्या का रूप लेकर मन में पराजय और निराशा का भाव उत्पन्न होता है ।
जब तक मन में ईर्ष्या रूपी अग्नि जल रही है, तब तक हम अपना जीवन किसी भी तरह से सफल नहीं बना सकते । हमें ईर्ष्या को त्यागकर ही आगे बढ़ना होगा । हमारे जीवन में ईर्ष्या महसूस करने के अनेक कारणों को हमने स्वयं ही जन्म दिया है और कुछ ने हमें ईर्ष्यालू बनने के लिये विवश भी किया होगा । उदाहरण के लिये परिवार में भाई बहनों के मध्य किसी एक को अधिक स्नेह मिलता है और किसी एक को कम मिलता है । निश्चित रूप से कम स्नेह पाने वाले के मन में अधिक स्नेह पाने वाले के प्रति ईर्ष्या का भाव उत्पन्न होगा । कालान्तर में यही छोटे छोटे कारण हमारा ईर्ष्यालू व्यक्तित्व बना देते हैं । किंतु इन सभी का निवारण किये बिना हम मन वांछित सफलता से वंचित ही रहेंगे ।
अनेक रुचिकर क्षेत्रों में हम स्वयं को प्रतिभा सम्पन्न बनाकर सफलता प्राप्त कर सकते हैं । किंतु इसके लिये हमें अपने जीवन में दिखने वाले अभावों से दृष्टि हटाकर ईर्ष्या की अग्नि को शांत करना होगा । तभी हम मन वांछित उपलब्धियां हासिल करने के प्रति जागरूक हो सकेंगे । अन्यथा जागरूकता का अभाव हमें ईर्ष्या की अग्नि में जीवन पर्यन्त जलाता ही रहेगा।
अपनी अन्तर्चेतना के स्तर पर जाकर जब विचार करेंगे तो यही पायेंगे कि ईर्ष्या एक ऐसा तुच्छ और त्याज्य मानसिक दोष है जो हमारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व कुरूप बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । किसी की सफलता पर हमें ईर्ष्यारहित रूप से अपनी भावनाएं प्रबन्धित करने की कला सीखनी होगी ।
हर व्यक्ति अपने जीवन में निश्चिन्तता और सुरक्षा की आवश्यकता महसूस करता है । इस हेतु वह अपनी निश्चिन्तता और सुरक्षा को कायम रखने में सक्षम लोगों से सदा सम्पर्क सम्बन्घ बनाये रखता है । निश्चित रूप से ऐसे लोग उसकी तुलना में आर्थिक रूप से, भौतिक रूप से और सामाजिक रूप से सफल और शक्तिशाली होंगे । विचारणीय प्रश्न है कि जिन लोगों पर हमारी निश्चिन्तता और सुरक्षा निर्भर है, उनके प्रति ईर्ष्या भाव उत्पन्न होना कहाँ तक उचित है ?
एक महत्वपूर्ण बात और हमें सदा याद रखनी चाहिये कि हर व्यक्ति की समस्त भौतिक उपलब्धियां अस्थाई रूप से एक निर्धारित समयावधि तक ही उसके पास रहती हैं । इन्हें जीवन पर्यन्त अपने पास रख पाना किसी के लिये सम्भव नहीं । औरों की उपलब्धियों के बारे में ईर्ष्या प्रकट करने की तुलना में अपनी उपलब्धियों का भरपूर आनन्द उठाना अधिक अच्छा है । यह बुद्धिमता अपनाकर हम ईर्ष्यालू बनाने वाले विचारों पर अंकुश लगा सकते हैं ।
हमारे लिये यही उचित होगा कि हमसे अधिक सफलता पाने वालों द्वारा प्रकट की गई खुशी का हम हृदय से समर्थन करें और स्वयं को भाग्यशाली अनुभव करें कि हम किसी ऐसे व्यक्ति के मित्र या सम्बन्धी हैं जो हमसे अधिक सक्षम और समर्थ है । किसी और की सफलता में अप्रत्यक्ष रूप से हमारी सफलता समाई हुई है । इसी दृष्टिकोण से अपने सभी मित्र सम्बन्धियों की सफलता का जश्न धूमधाम से मनायें । हमसे अधिक सफल लोगों से ईर्ष्या करने या नाखुश होने से बेहतर है कि हम उनके सानिध्य में रहकर सफलता पाने का प्रशिक्षण प्राप्त करें । इसलिये ईर्ष्या में न जलें, अपना मन बदलें ।
ऊँ शांति
मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान
मोबाइल नम्बर 9460641092
Mohammed urooj khan
16-Apr-2024 12:03 AM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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kashish
11-Apr-2024 09:03 AM
Amazing
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Varsha_Upadhyay
10-Apr-2024 11:36 PM
Nice
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